मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

आकाश

फलक से टुट जाती है नजर न पाकर मेरे निशां
लौट आई प्रतिध्वनि मैरी होकर बेजुबान
कहां हैं मेरे निशां, वक्त की रेत पर एक नदी जो थी पागल, नहीं बाकी अब उसके निशां, वो लौट आयेगी अपने बियाबान में, या विलुप्त होगी तेरे न होने के एतबार में, पर होने न होने के बाद भी कुछ सांसे शेष रहेंगी जो जो ढूंढती रहेगी तेरे निशां। मै थी एक भटकती हवा, एक ख्वाब भर थी जिदंगी मेरी, तुझको पाना ख्वाब ही रहा , खुद ब खुद मिटाने लगे हम अपने निशां। 

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

दामिनी

थी कभी इतिहास का स्वर्णिम उदहारण          
सावित्री ,दुर्गा ,काली भी
रह गयी मात्र अब  अथाह वेदना  मै
उस रात का कल्मष किसने देखा
मैंने धरा की आँखों मे नीर  बवंडर  देखा
कर रक्त से लथपथ  मुझे ,दे रहे ताब मुछों पर
एक निरीह  देह पर पा विजय
यह सांप फुंकार रहे, मेरी बेकस बिलखती  आहे
कर रही छलनी ह्रदय माँ का !!!!!!!!!!!!
क्या पी  सकेगी कोई  काली ,रक्त इन महापिशाचो का
क्या होगा सूर्य अस्त इस पशुव्रती का ,निर्ममता का
हिंसा -दमन -शोषण  भरे इस नरक लोक मे
कौन इनका संहार करेगा
कर मेरा सर्वनाश ,कौन  सर्जन का काम करेगा    
दे रही श्राप तुझे मेरी टूटती साँसे
न जन्म अब तुझे मनुष्य का अब कभी मिलेगा
पशु था तू सदा  पशु  ही रहेगा
मेरे प्रेम और विश्वास को तू न अब प् सकेगा  कभी
न कोई बहन अब राखी की देगी  दुहाई कभी
तू सदा मेरी घ्रणा  का पात्र  रहेगा ,

न अब समय रहा सीता और सावित्री का
समय घोर गर्जन का
अब बन जाए हर निरह लड़की दुर्गा और काली
तब जाकर कहीं इन पिशाचो का तांडव रुकेगा !!!!!!

रविवार, 18 नवंबर 2012

meri radha

मेरी राधा सिर्फ़ मेरी
मेरी धड़कने ,मेरी प्रेरणा
मेरे अधरों पर खिलते कमल तुम्हारी मुस्कराहट के
विधु सी चमकती मेरी आँखों मे
हो रही तरंगित मेरी साँसों मे
हो रही प्रवाहित मेरे रक्त प्रवाह मे
मेरी अर्धांगिनी ,तुम बिन मे पुर्ण नहीं
राधा तुम मेरी बासुरी\हो
सुनो हर धड़कन मेरी ,राधा ,राधा कहती है
मैं युगों -युगों तक तुमसे यू ही प्यार करूँगा
देखो खुद को तुम कृष्णमय हो गयी हो
तुम जन्म-जन्मांतर के लिए मेरी हो गयी हो
आओ आज कसम ये खाते है युगों तक
संग रहने की प्रीत निभाते है
आज से न मुझ बिन तुम ,न तुम बिन मै
प्रेम की हर हद पार कर जाते है
आओ एक आलौकिक जहाँ बसाते है
दूर कहीं इस जहान से आकाश गंगा बनाते है !!!!!!!!!!!!

शनिवार, 18 अगस्त 2012

श्री राधा और श्री कृष्ण का ब्रह्मा जी के द्वारा विवाह

श्री  नारद जी कहते है -राजन !एक दिन नन्द जी अपने नंदन को  अंक मे लेकर गाये चराते हुए  खिर्के क पास से बहूत दूर निकल गए .धीरे धीरे भांडीर वन जा पहुंचे ,जो कालिंदी -नीर का स्पर्श करके बहने वाले तीरवर्ती  शीतल समीर के झोको से कम्पित हो रहा था .थोड़ी ही देर मे श्री कृष्ण की इच्छा से वायु का वेग अत्यंत प्रखर हो गया .आकाश मेघो की घटाओं से ढक गया .तमाल और कदम्ब वृक्षों के पल्लव टूट-टूट कर गिरने ,उड़ने और अत्यंत भय  उत्पन करने लगे ,उस समय महान अन्धकार छा  गया श्री कृष्ण अपने  की  मे  बहूत भयभीत प्रतीत होने लगे नन्द को भी भय हो गया ,वह श्री कृष्ण को लेकर श्री हरी की शरण मे गए ,'उसी पल करोडो सूर्य के समूह -की सी दिव्य दीप्ती उदित हुई वेह निकट आती सी जान पड़ी उस दीपित राशि के भीतर नों नंदों के राजा ने  व्रश्भानुनंदिनी  श्री राधा को देखा  वे करोडों  चंद्रमाओं की कान्ति  धारण किये हुई थी,श्री राधा के दिव्य तेज से अभिभूत हो नन्द ने तत्काल उनके सामने मस्तक झुकाया -और हाथ जोड कर कहा हे 'राधे ! ये साक्षात पुरूषोतम है और तुम उनकी मुख्य प्राणबल्लभा हो ,ये गुप्त रहस्य मै  गर्ग जी के मुख सुनकर जनता हूँ !अपने प्राण नाथ मेरे अंक से ले लो ,'
                                   श्री राधा ने कहा --नन्द जी आप ठीक कहते है मेरे दर्शन दुर्लभ है ,आज  तुम्हारी  भक्ति से प्रसन्न हो  कर मैंने तुमको दर्शन दिए है
श्री नन्द जी बोले -देवी यदि वास्तव मे मुझ से प्रसन्न हो तो तुम दोनों प्रिय -प्रियतम के चरनारविनदो  मे मेरी भक्ति बनी रहे
 श्री नारद जी कहते है -राजन तब तथास्तु  कहकर श्री राधा  ने नन्द जी की गोद से अपने प्राण नाथ  को ले लिया ,फिर नन्द जी जब उनको प्रणाम करके वहां से चले गए ,तब श्री राधिका जी भांडीर वन गयी .पहले गोलोकधाम से जो 'प्रथ्वी देवी' इस भूतल पर उतरी थी ,वे अपना दिव्य रूप धारण करके प्रकट हुई ,वृन्दावन  कामपूरक दिव्य वृक्षों के साथ अपना दिव्य रूप धारण करके  शोभा पाने लगा
                                  दिव्यधाम की शोभा अवतरण होते ही साक्षात पुरषोतम घनश्याम भगवान्  श्री कृष्ण  किशोरावस्था के अनुरूप दिव्य देह धारण करके श्री राधा के समुख खड़े  हो गए ,उन्होंने ने अपनी प्रियतमा का हाथ अपने हाथो मे  लिया ,और उनके साथ विवाह मंडप  मे प्रविष्ट हुए ,वे दोनों एक दुसरे से मीठी मीठी बाते करते हुए  मेघ और विधुत की भाति अपनी प्रभा से उदीप्त हो रहे थे ,उसी समय देवताओ मे श्रेष्ठ्य विधाता -ब्रह्मा जी आकाश से उतरकर ,परमात्मा  श्री कृष्ण जी के समुख आये और हाथ जौड़ कर  अपनी कमनीय वाणी द्वारा  अपने चारो मुखो से उनकी स्तूति करने लगे
श्री नारद जी कहते है -इस प्रकार स्तुति करके ब्रह्मा जी ने उठ कर कुंड मे  अग्नि प्रज्वलित की और अग्निदेव के समुख बैठे हुए उन दोनों प्रिय-प्रियतम  के वैदिक  विधान से पाणीग्रहण -संस्कार की विधि पूरी की ,यह सब करके ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण और राधिका जी से अग्निदेव की सात परिक्रमा करवाई ,उसके बाद श्री कृष्ण के वक्ष;स्थलपर श्री राधिका जी का हाथ रखवा कर और श्री कृष्ण जी का हाथ राधा जी के प्रस्थ्देश मे  रखवा करके विधाता ने उनसे मंत्रो का उच्च स्वरों से पाठ कर वाया ,उन्होंने राधा क हाथों से श्री कृष्ण के कंठ मे एक केसर युक्त माला पहनवाई ,उसी प्रकार श्री कृष्ण ने भी राधा जी के कंठ मे माला पहनाई .पितामह ने उन दोनों से पांच मन्त्र बुलवाए ,और जैसे एक पिता अपनी पुत्री का हाथ एक सुओग्य वर के हाथ मे दान करता है उसी प्रकार ब्रह्मा जी ने श्री राधा को श्री कृष्ण के हाथो मे सोपा !!!!!!!!!!!!!!!!!!
                                             श्रीमंम्हार्श्गार्गाचार्य्प्रनीत  द्वारा रचित  श्री गर्ग - सहिंता  के साभार से 

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

chetany

विधु तुम
बन के स्वप्न ,एक रोज
इस रात की आँखों मे साकार  हुए
मै  चांदनी मे सरोबर हुई
स्पर्श से तुम्हारे विकल हो गयी रात
शून्यता  से भरे इस मन को
ये चेतनता  सुखमय लगी
किन्तु विकल हुआ मन का प्रवाह
यूं  लगा शून्य शितिज से लौट कर आ रही है
मेरी आवाज !
विस्मय गहरा था ?की क्या तुम हो !
व्याकुल मेरा मन ,ह्रदय आशान्त
मै पाती हूँ तुमको ,अगले ही पल खो देती  हूँ
ये कैसी अतृप्ति ,ये कैसा अहसास
कब बने तुम इस जीवन के प्राण
मेरे प्रिय ,आकाश
तुम हो मेरे पास ,फिर क्यों हो रहा मुझे ये विराग
तुम हो ,तुम हो ,ये तुम ही हो !!!!!
इस अहसास मे  जीती मरती हूँ!
पर मै  भी करती हूँ तुम से बेहद प्यार
मेरी  तमाम भूलों को करना स्वीकार
मेरे अंत तक तुम मेरे साथ रहना ,
प्यार तुम्हारा अब जीवन सार
इन आँखों मे असंख्य दीप जलाये है
भर देना तुम इन मे  एक चेतन्य  अनंत प्रकाश !

रविवार, 24 जून 2012

स्याह -सिहायी

मै फकत रात हूँ ,स्याह -सिहायी  मे नहायी  हुई
मुझ पर  बेवजह चाँद का इलज़ाम !
कसूरवार ये  आँखें !
क्यों देखा फलक की  ओर ?

अब इन आँखों के चिराग  बूझा दे कोई  !
वक़्त को शायद बहुत  वक़्त लगेगा ,
इन सराब से मुझे और गुजरना नही
 सिरे से मेरे निशाँ मिटा दे कोई
हर शब्द ले रहा है आखरी साँसे
इन साँसों को बुझा दे कोई !!!!!!!!!!

सोमवार, 19 मार्च 2012

मै समंदर

मै समंदर तन्हां
खुद मे तूफानों को समाये
तकदीर मे लिखी फ़कत तन्हाई
जिंदगी तू भला कब हमें रास  आई
शब्द -कमल खिले जो भूल से इस सहरा मे
भ्रम थे सभी निरर्थक अर्थ वाले
न पास आये साहिल कभी दूर से दिखने वाले
रास आये  वही  आंसू सदा संग रहने वाले
फिर से मझधार बसेरा अपना
आसमान न समझ सकेगा तड़प हमारी
खामाशी  से खड़ा है ,लबो पर मुस्कराहट सजाये !!!!!!!!!!!