रविवार, 24 अक्तूबर 2010

barbarta

सुनो सुनाती हूँ मैं तुमको
बर्बरता की एक दुर्द्न्त कथा
जब निशीथ बीतने  वाली थी
संग पिता के दो बालक थे निद्रालीन
तभी किया निद्रा ने भी मुझ से परिहास
मैं उनींदी भी चल दी उसके साथ
स्वप्न सलौना कोई उन मासूमों की आँखों ,
मैं आया था देख जिसे वो नन्हा बालक
फ़रिश्ते सा  मुस्काया था
तब क्या खबर थी उसको कि क्रूर नियति ने
चुपके से उसका सुन्दर माथा चूम लिया .
                                                 क्रमश:

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

agnivarsha: asmita

agnivarsha: asmita: "आह! न अब मैं सती रही न अब वो गति रही , न अब वो अग्निहोत्र रही ! ये क्या कहती हो ? तुम तो सदियों से आग हो , आग ही रहोगी . पवित्रता भी तो सदैव..."

agnivarsha: asmita

agnivarsha: asmita: "आह! न अब मैं सती रही न अब वो गति रही , न अब वो अग्निहोत्र रही ! ये क्या कहती हो ? तुम तो सदियों से आग हो , आग ही रहोगी . पवित्रता भी तो सदैव..."

agnivarsha: asmita

agnivarsha: asmita: "आह! न अब मैं सती रही न अब वो गति रही , न अब वो अग्निहोत्र रही ! ये क्या कहती हो ? तुम तो सदियों से आग हो , आग ही रहोगी . पवित्रता भी तो सदैव..."

asmita

आह! न अब मैं सती रही न अब वो गति रही ,
न अब वो अग्निहोत्र रही !
ये क्या कहती हो ?
तुम तो सदियों से आग हो ,
आग ही रहोगी .
पवित्रता भी तो सदैव खाती कसम तुम्हारी .
तुम हो कितनी भोली
बस यूं ही निश्छल बहती रहती हो
तुम क्या जानो
मेरी अस्मिता पर कितने प्रश्नचिन्ह लगे है |
मेरी आन पर कितने संकट आन पड़ें है!facebook