बाबा अगर न किया होता तुमने माँ का त्याग
खिलते न कभी कीचड़ मे ये अभागे जलजात
आह! भाग्य का परिहास ,देकर प्रकाश तुमको
पाया उसने केवल जल जाने का अधिकार
कैसे दे पाती वो कोई घर मकान
रोटी की चिंता बनी रही सदा उसके जी का जंजाल
पत्थरो के न कभी टूटे अहम् ,शूल ही शूल उसके हिस्से आये
भोला मन समझ न पाया चरित्र इन रक्त-समबंधो का
क्या वो देते जीवन ,कभी न प्यार से माथा चूमा
प्रेम के बदले मिला सदा बिखराव
कैसा आपनापन ?
उस जर्जर सम्बन्ध के खातिर ,हुई सभी आभिलाशाए ख़ाक
कभी न माना उसने जीवन अपना अभिशाप
तुमने तो छोड़ दिया था ,उसने निभाया जीवन्पर्यंत हमारा साथ
कर्त्तव्य -पथ पर चली सदा वो ,न आने दी हम पर कोई आंच !
खिलते न कभी कीचड़ मे ये अभागे जलजात
आह! भाग्य का परिहास ,देकर प्रकाश तुमको
पाया उसने केवल जल जाने का अधिकार
कैसे दे पाती वो कोई घर मकान
रोटी की चिंता बनी रही सदा उसके जी का जंजाल
पत्थरो के न कभी टूटे अहम् ,शूल ही शूल उसके हिस्से आये
भोला मन समझ न पाया चरित्र इन रक्त-समबंधो का
क्या वो देते जीवन ,कभी न प्यार से माथा चूमा
प्रेम के बदले मिला सदा बिखराव
कैसा आपनापन ?
उस जर्जर सम्बन्ध के खातिर ,हुई सभी आभिलाशाए ख़ाक
कभी न माना उसने जीवन अपना अभिशाप
तुमने तो छोड़ दिया था ,उसने निभाया जीवन्पर्यंत हमारा साथ
कर्त्तव्य -पथ पर चली सदा वो ,न आने दी हम पर कोई आंच !