मै फकत रात हूँ ,स्याह -सिहायी मे नहायी हुई
मुझ पर बेवजह चाँद का इलज़ाम !
कसूरवार ये आँखें !
क्यों देखा फलक की ओर ?
अब इन आँखों के चिराग बूझा दे कोई !
वक़्त को शायद बहुत वक़्त लगेगा ,
इन सराब से मुझे और गुजरना नही
सिरे से मेरे निशाँ मिटा दे कोई
हर शब्द ले रहा है आखरी साँसे
इन साँसों को बुझा दे कोई !!!!!!!!!!
मुझ पर बेवजह चाँद का इलज़ाम !
कसूरवार ये आँखें !
क्यों देखा फलक की ओर ?
अब इन आँखों के चिराग बूझा दे कोई !
वक़्त को शायद बहुत वक़्त लगेगा ,
इन सराब से मुझे और गुजरना नही
सिरे से मेरे निशाँ मिटा दे कोई
हर शब्द ले रहा है आखरी साँसे
इन साँसों को बुझा दे कोई !!!!!!!!!!