रविवार, 24 जून 2012

स्याह -सिहायी

मै फकत रात हूँ ,स्याह -सिहायी  मे नहायी  हुई
मुझ पर  बेवजह चाँद का इलज़ाम !
कसूरवार ये  आँखें !
क्यों देखा फलक की  ओर ?

अब इन आँखों के चिराग  बूझा दे कोई  !
वक़्त को शायद बहुत  वक़्त लगेगा ,
इन सराब से मुझे और गुजरना नही
 सिरे से मेरे निशाँ मिटा दे कोई
हर शब्द ले रहा है आखरी साँसे
इन साँसों को बुझा दे कोई !!!!!!!!!!