श्री नारद जी कहते है -राजन !एक दिन नन्द जी अपने नंदन को अंक मे लेकर गाये चराते हुए खिर्के क पास से बहूत दूर निकल गए .धीरे धीरे भांडीर वन जा पहुंचे ,जो कालिंदी -नीर का स्पर्श करके बहने वाले तीरवर्ती शीतल समीर के झोको से कम्पित हो रहा था .थोड़ी ही देर मे श्री कृष्ण की इच्छा से वायु का वेग अत्यंत प्रखर हो गया .आकाश मेघो की घटाओं से ढक गया .तमाल और कदम्ब वृक्षों के पल्लव टूट-टूट कर गिरने ,उड़ने और अत्यंत भय उत्पन करने लगे ,उस समय महान अन्धकार छा गया श्री कृष्ण अपने की मे बहूत भयभीत प्रतीत होने लगे नन्द को भी भय हो गया ,वह श्री कृष्ण को लेकर श्री हरी की शरण मे गए ,'उसी पल करोडो सूर्य के समूह -की सी दिव्य दीप्ती उदित हुई वेह निकट आती सी जान पड़ी उस दीपित राशि के भीतर नों नंदों के राजा ने व्रश्भानुनंदिनी श्री राधा को देखा वे करोडों चंद्रमाओं की कान्ति धारण किये हुई थी,श्री राधा के दिव्य तेज से अभिभूत हो नन्द ने तत्काल उनके सामने मस्तक झुकाया -और हाथ जोड कर कहा हे 'राधे ! ये साक्षात पुरूषोतम है और तुम उनकी मुख्य प्राणबल्लभा हो ,ये गुप्त रहस्य मै गर्ग जी के मुख सुनकर जनता हूँ !अपने प्राण नाथ मेरे अंक से ले लो ,'
श्री राधा ने कहा --नन्द जी आप ठीक कहते है मेरे दर्शन दुर्लभ है ,आज तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हो कर मैंने तुमको दर्शन दिए है
श्री नन्द जी बोले -देवी यदि वास्तव मे मुझ से प्रसन्न हो तो तुम दोनों प्रिय -प्रियतम के चरनारविनदो मे मेरी भक्ति बनी रहे
श्री नारद जी कहते है -राजन तब तथास्तु कहकर श्री राधा ने नन्द जी की गोद से अपने प्राण नाथ को ले लिया ,फिर नन्द जी जब उनको प्रणाम करके वहां से चले गए ,तब श्री राधिका जी भांडीर वन गयी .पहले गोलोकधाम से जो 'प्रथ्वी देवी' इस भूतल पर उतरी थी ,वे अपना दिव्य रूप धारण करके प्रकट हुई ,वृन्दावन कामपूरक दिव्य वृक्षों के साथ अपना दिव्य रूप धारण करके शोभा पाने लगा
दिव्यधाम की शोभा अवतरण होते ही साक्षात पुरषोतम घनश्याम भगवान् श्री कृष्ण किशोरावस्था के अनुरूप दिव्य देह धारण करके श्री राधा के समुख खड़े हो गए ,उन्होंने ने अपनी प्रियतमा का हाथ अपने हाथो मे लिया ,और उनके साथ विवाह मंडप मे प्रविष्ट हुए ,वे दोनों एक दुसरे से मीठी मीठी बाते करते हुए मेघ और विधुत की भाति अपनी प्रभा से उदीप्त हो रहे थे ,उसी समय देवताओ मे श्रेष्ठ्य विधाता -ब्रह्मा जी आकाश से उतरकर ,परमात्मा श्री कृष्ण जी के समुख आये और हाथ जौड़ कर अपनी कमनीय वाणी द्वारा अपने चारो मुखो से उनकी स्तूति करने लगे
श्री नारद जी कहते है -इस प्रकार स्तुति करके ब्रह्मा जी ने उठ कर कुंड मे अग्नि प्रज्वलित की और अग्निदेव के समुख बैठे हुए उन दोनों प्रिय-प्रियतम के वैदिक विधान से पाणीग्रहण -संस्कार की विधि पूरी की ,यह सब करके ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण और राधिका जी से अग्निदेव की सात परिक्रमा करवाई ,उसके बाद श्री कृष्ण के वक्ष;स्थलपर श्री राधिका जी का हाथ रखवा कर और श्री कृष्ण जी का हाथ राधा जी के प्रस्थ्देश मे रखवा करके विधाता ने उनसे मंत्रो का उच्च स्वरों से पाठ कर वाया ,उन्होंने राधा क हाथों से श्री कृष्ण के कंठ मे एक केसर युक्त माला पहनवाई ,उसी प्रकार श्री कृष्ण ने भी राधा जी के कंठ मे माला पहनाई .पितामह ने उन दोनों से पांच मन्त्र बुलवाए ,और जैसे एक पिता अपनी पुत्री का हाथ एक सुओग्य वर के हाथ मे दान करता है उसी प्रकार ब्रह्मा जी ने श्री राधा को श्री कृष्ण के हाथो मे सोपा !!!!!!!!!!!!!!!!!!
श्रीमंम्हार्श्गार्गाचार्य्प्रनीत द्वारा रचित श्री गर्ग - सहिंता के साभार से
श्री राधा ने कहा --नन्द जी आप ठीक कहते है मेरे दर्शन दुर्लभ है ,आज तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हो कर मैंने तुमको दर्शन दिए है
श्री नन्द जी बोले -देवी यदि वास्तव मे मुझ से प्रसन्न हो तो तुम दोनों प्रिय -प्रियतम के चरनारविनदो मे मेरी भक्ति बनी रहे
श्री नारद जी कहते है -राजन तब तथास्तु कहकर श्री राधा ने नन्द जी की गोद से अपने प्राण नाथ को ले लिया ,फिर नन्द जी जब उनको प्रणाम करके वहां से चले गए ,तब श्री राधिका जी भांडीर वन गयी .पहले गोलोकधाम से जो 'प्रथ्वी देवी' इस भूतल पर उतरी थी ,वे अपना दिव्य रूप धारण करके प्रकट हुई ,वृन्दावन कामपूरक दिव्य वृक्षों के साथ अपना दिव्य रूप धारण करके शोभा पाने लगा
दिव्यधाम की शोभा अवतरण होते ही साक्षात पुरषोतम घनश्याम भगवान् श्री कृष्ण किशोरावस्था के अनुरूप दिव्य देह धारण करके श्री राधा के समुख खड़े हो गए ,उन्होंने ने अपनी प्रियतमा का हाथ अपने हाथो मे लिया ,और उनके साथ विवाह मंडप मे प्रविष्ट हुए ,वे दोनों एक दुसरे से मीठी मीठी बाते करते हुए मेघ और विधुत की भाति अपनी प्रभा से उदीप्त हो रहे थे ,उसी समय देवताओ मे श्रेष्ठ्य विधाता -ब्रह्मा जी आकाश से उतरकर ,परमात्मा श्री कृष्ण जी के समुख आये और हाथ जौड़ कर अपनी कमनीय वाणी द्वारा अपने चारो मुखो से उनकी स्तूति करने लगे
श्री नारद जी कहते है -इस प्रकार स्तुति करके ब्रह्मा जी ने उठ कर कुंड मे अग्नि प्रज्वलित की और अग्निदेव के समुख बैठे हुए उन दोनों प्रिय-प्रियतम के वैदिक विधान से पाणीग्रहण -संस्कार की विधि पूरी की ,यह सब करके ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण और राधिका जी से अग्निदेव की सात परिक्रमा करवाई ,उसके बाद श्री कृष्ण के वक्ष;स्थलपर श्री राधिका जी का हाथ रखवा कर और श्री कृष्ण जी का हाथ राधा जी के प्रस्थ्देश मे रखवा करके विधाता ने उनसे मंत्रो का उच्च स्वरों से पाठ कर वाया ,उन्होंने राधा क हाथों से श्री कृष्ण के कंठ मे एक केसर युक्त माला पहनवाई ,उसी प्रकार श्री कृष्ण ने भी राधा जी के कंठ मे माला पहनाई .पितामह ने उन दोनों से पांच मन्त्र बुलवाए ,और जैसे एक पिता अपनी पुत्री का हाथ एक सुओग्य वर के हाथ मे दान करता है उसी प्रकार ब्रह्मा जी ने श्री राधा को श्री कृष्ण के हाथो मे सोपा !!!!!!!!!!!!!!!!!!
श्रीमंम्हार्श्गार्गाचार्य्प्रनीत द्वारा रचित श्री गर्ग - सहिंता के साभार से