सोमवार, 31 दिसंबर 2012

दामिनी

थी कभी इतिहास का स्वर्णिम उदहारण          
सावित्री ,दुर्गा ,काली भी
रह गयी मात्र अब  अथाह वेदना  मै
उस रात का कल्मष किसने देखा
मैंने धरा की आँखों मे नीर  बवंडर  देखा
कर रक्त से लथपथ  मुझे ,दे रहे ताब मुछों पर
एक निरीह  देह पर पा विजय
यह सांप फुंकार रहे, मेरी बेकस बिलखती  आहे
कर रही छलनी ह्रदय माँ का !!!!!!!!!!!!
क्या पी  सकेगी कोई  काली ,रक्त इन महापिशाचो का
क्या होगा सूर्य अस्त इस पशुव्रती का ,निर्ममता का
हिंसा -दमन -शोषण  भरे इस नरक लोक मे
कौन इनका संहार करेगा
कर मेरा सर्वनाश ,कौन  सर्जन का काम करेगा    
दे रही श्राप तुझे मेरी टूटती साँसे
न जन्म अब तुझे मनुष्य का अब कभी मिलेगा
पशु था तू सदा  पशु  ही रहेगा
मेरे प्रेम और विश्वास को तू न अब प् सकेगा  कभी
न कोई बहन अब राखी की देगी  दुहाई कभी
तू सदा मेरी घ्रणा  का पात्र  रहेगा ,

न अब समय रहा सीता और सावित्री का
समय घोर गर्जन का
अब बन जाए हर निरह लड़की दुर्गा और काली
तब जाकर कहीं इन पिशाचो का तांडव रुकेगा !!!!!!