गुरुवार, 24 मार्च 2011

सूनामी

ओ निर्मम विषधारी
कहने को गर्भ मे तेरे मोती पलते
पर अंतस मे तेरे हर पल प्रलय मचलते
मचा कर धरा के हृदय मे हाहाकार
बहने लगा उसकी आँखों से क्रदनमय नीर
भेद जालाधि ने ह्रदय मेरा , ये निर्जन नगर बसाया
निस्पंद पड़ा था चारो ओर
निर्लज हँसता था , इस अमिट दुःख पर मेरे !
आह हो गयी , गोद अब मेरी सूनी
हाय ! तू है घ्रणित ,हिंसक , पशुपरवर्ती का
 लील ली  तूने मानवता सारी
त्राही -त्राही कर उठी मैं !
हाय सूनामी!!!