शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

समर्पण

युग बीते जीवन सदा संघर्ष रहा
 देह ही पहचान बनी,प्रेम का न मेरे कोइ मोल रहा
व्यर्थ हुई  प्राथनायै ,जन्म ,जन्मान्तर  तक चली अग्नि परिक्षायै
मै श्रद्धा  असीम ध्रेय्धारी,निस्ठुरता कि आंधी भी बुझा  न सकी मेरी प्रेम बाती
अश्रुजल से सदा सीची घोर विप्दायै,फूल का जीवन लेकर मैने सीखा सदा सुगन्ध लूटाना
देना या मिट जाना ही मेरा जीवन सार
बिन तुम्हारे न मेरा कोइ जीवन आधार
मै धरती तुम्हारी ,तुम मेरे निस्ठुर आकाश