गुरुवार, 25 नवंबर 2010

nirmamta

निर्ममता का कुटिल अट्टहास गूंज रहा था,
मेरी इन आँखों में रुधिर जल बन उतर आया
मैं पगलायी,बौराई सी मानवता, मानवता चिल्लाई !!!
अरी निर्मम मानवी तू किस सघन वन जा बैठी
या फिर मानवते,तूने निर्ममता का रूप धर लिया
क्या फिर मानवता के अमर-पथ पर चलना छोड़ दिया
क्या जीती है इस जग में अब भी ?
तूने किया क्यों ऐसा कुक्र्त्य हाय!
प्राणी का प्राणी से बस खाली
निर्ममता का ही नाता जोड़ दिया
तूने तो सदा मानव में  रहने की कसम खायी थी
फिर क्यों हुआ ये जग खाली तुझ से !

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

aahuoti

पशु- आहुति की कुत्सित प्रथा
किसने जानी इस माँ की मौन व्यथा !
था जो अभी सजीव,पड़ा अब रक्तरंजित  निर्जीव
आह बरसने लगा इन क्रद्नमय आँखों  से हलाहल नीर
मिट सकेगी भला कैसे ये पीर
सोच रही धरा धीर गंभीर !

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

pralay pravah

कट्टरता ने जबरन थामा मेरा हाथ
निर्ममता ने किया मुझ पर किया ऐसा
घिनौना प्रहार !
आह ! जली ऐसी ज्वाला
जले दो सुन्दर पुष्प ,नन्हे कम्लान
न देखा जिसने ये सुन्दर संसार ,
देखी निष्ठुरता और ये क्रूर प्रहार
पल में धू-धू कर दहक उठी  मैं प्रलयकारिणी
किया मैंने शोक-विलाप मन मे उठा हाहाकार
तभी चला मदमत हवा का प्रवाह
और उड़ी वो मासूम  राख
कर मुझे कलुषित !
इस प्रलयप्रवाह  में
मैं उठी कराह !!!