शनिवार, 23 अप्रैल 2011

मोरे कान्हां

मोरे कान्हां काहे सताए सपनो मे आके
दूर कहीं जब कोई बंसी बजाये
इन नयनों से जल छलकता जाये
काहे लागे तू है मोरे आस पास
इन नयनों मे काहे ज्योति 
जो तू मुझ को नज़र न आये
जुग बीते इस बिरहन को , नैन बिछाये
जब जब पवन छू कर तो को आये
इठलाकर पूछे मो से ?
तेरे कान्हां क्यों नहीं आये
मै बावरी सूखे अधरों से बंसी तोरी चुमू ऐसे
इन आंसुओ से चरण पखारे हो तोरे जैसे
मोरे कान्हां काहे तू न आये .