शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

chetany

विधु तुम
बन के स्वप्न ,एक रोज
इस रात की आँखों मे साकार  हुए
मै  चांदनी मे सरोबर हुई
स्पर्श से तुम्हारे विकल हो गयी रात
शून्यता  से भरे इस मन को
ये चेतनता  सुखमय लगी
किन्तु विकल हुआ मन का प्रवाह
यूं  लगा शून्य शितिज से लौट कर आ रही है
मेरी आवाज !
विस्मय गहरा था ?की क्या तुम हो !
व्याकुल मेरा मन ,ह्रदय आशान्त
मै पाती हूँ तुमको ,अगले ही पल खो देती  हूँ
ये कैसी अतृप्ति ,ये कैसा अहसास
कब बने तुम इस जीवन के प्राण
मेरे प्रिय ,आकाश
तुम हो मेरे पास ,फिर क्यों हो रहा मुझे ये विराग
तुम हो ,तुम हो ,ये तुम ही हो !!!!!
इस अहसास मे  जीती मरती हूँ!
पर मै  भी करती हूँ तुम से बेहद प्यार
मेरी  तमाम भूलों को करना स्वीकार
मेरे अंत तक तुम मेरे साथ रहना ,
प्यार तुम्हारा अब जीवन सार
इन आँखों मे असंख्य दीप जलाये है
भर देना तुम इन मे  एक चेतन्य  अनंत प्रकाश !