सुनो सुनाती हूँ मैं तुमको
बर्बरता की एक दुर्द्न्त कथा
जब निशीथ बीतने वाली थी
संग पिता के दो बालक थे निद्रालीन
तभी किया निद्रा ने भी मुझ से परिहास
मैं उनींदी भी चल दी उसके साथ
स्वप्न सलौना कोई उन मासूमों की आँखों ,
मैं आया था देख जिसे वो नन्हा बालक
फ़रिश्ते सा मुस्काया था
तब क्या खबर थी उसको कि क्रूर नियति ने
चुपके से उसका सुन्दर माथा चूम लिया .
क्रमश:
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