गुरुवार, 10 मार्च 2011

कश्मीर

यह धुआं -धुआं  सा कैसा ,हवा क्यों दम साधे बैठी  है 
यह रास्ता भटक मैं  किस अंधेर नगरी चली आई 
शमशान सा सन्नाटा पसरा है क्यों चारो ओर
क्या इसी  को स्वर्ग कहते है ?
आह इन बागों के फूल क्यों बिखरे है 
कली नहीं कोई शाख पर, ये कांटे क्यों तनहा रोते  है 
तरु क्यों सर झुकाए खड़े है 
ये कपड़ा-कपड़ा कौन चीखता है 
ये निष्कासित अप्सराएँ क्यों श्वेत शिखर पर बरस रही ,
बदहवास सी क्यों वो किसी गहरी   नदी  का पता पूछ रही ! 
                                                                                क्रमश

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या इसी को स्वर्ग कहते हैं...

    और इसी तरह के हज़ारों सवाल
    उस खूबसूरत घाटी में
    मानो दफ़्न हुए जा रहे हैं ....

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  2. आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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