ख्वाबो के इन खंडरो मे भटक रहे अपनी सुधि बिसराए
किस्मत के थे मारे जज्बात हमारे ,फिर भी चुन चुन कर संजो देते है
बिखरे थे जो अहसास सारे ,किस्मत की वो काली ,ऊची दीवारे
तोड़ सके न ,विफल हुए जतन सारे
कितने सावन आये ,रहा मन मरुस्थल
चुभते रहे कांटे आस वाले
जीते जी कब बन सके ताजमहल
अब इस मन को कौन समझाए
अब ये खंडर ही शीश महल अपने
ये खारा पानी ही गंगा जल !!!!!!!!!!!!!
Bahut dard samaya hai! Behtareen rachana!
जवाब देंहटाएंजीते जी कब बन सके ताजमहल
जवाब देंहटाएंअब इस मन कौन समझाए
अब ये खंढर ही शीशमहल अपने
ये खारा पानी ही गंगाजल
बहुत खूब
हां, करना पड़ता है जिन्दगी से समझौता