कट्टरता ने जबरन थामा मेरा हाथ
निर्ममता ने किया मुझ पर किया ऐसा
घिनौना प्रहार !
आह ! जली ऐसी ज्वाला
जले दो सुन्दर पुष्प ,नन्हे कम्लान
न देखा जिसने ये सुन्दर संसार ,
देखी निष्ठुरता और ये क्रूर प्रहार
पल में धू-धू कर दहक उठी मैं प्रलयकारिणी
किया मैंने शोक-विलाप मन मे उठा हाहाकार
तभी चला मदमत हवा का प्रवाह
और उड़ी वो मासूम राख
कर मुझे कलुषित !
इस प्रलयप्रवाह में
मैं उठी कराह !!!
mujhe pasand hai
जवाब देंहटाएंवैष्णवी जी शुक्रिया जो आपने मेरे ब्लॉग तक आ कर मेरे यहाँ तक पहुचने का माध्यम दिया. आप बहुत अच्छा लिखती हैं. सुंदर सृजन.
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